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1. केवल समण

समण संघ नाम से यह सुनिश्चित हो जाता है कि यह समणों का संघ है। इसमें समणों के अतिरिक्त किसी और की तनिक भी भागीदारी नहीं हो सकती है। यह बुद्ध का भिक्खु संघ नहीं है, जहां हर समण व वमण के लिए प्रवेश था। यह सुद्द रूप से समण लोगों के लाभ के लिये संघ है। अन्य का इसमें कोई काम नही है।

जब भी कोई सभा, सम्मेलण, संगीति होती है, तब उसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी समण ही हों। यदि समण के अतिरिक्त कोई अन्य होता है तब उसे वहां से अपना स्थान छोडना होता है।

समण सद्द का अत्थ आरम्भ में बताया गया है। आरम्भ में भारत, महाभारत नाम से भी पहले, यहां रहने वाले सभी समण थे। लोगों की मूलनिवासी पहचान का नाम ही समण था। आज जिन लोगों को बहुजन, अर्जक, मूलनिवासी, आदिवासी, कमेरा, मेहनतकश, मजदूर, मजबूर, दलिद्द, Indigineous, aborigines, पिछड़ा, दलित, शोषित, Dipressed शूद्र, नीच, OBC, ST, SC, धर्म परिवर्तित, विमुक्त लोग, भटके लोग आदि के नाम से जाना जाता है, उन सबकी पुरातन, प्राचीन राष्ट्रीय पहचान "समण" है।

यदि आप भारत से बाहर जाते हैं, तब अपने आप को भारतीय बताते हैं। पर भारत के अन्दर यदि कोई आपसे पूछे कि आप की पहचान क्या है, तब आप उसे अपने राज्य की पहचान बताते हैं। ठीक ऐसा ही पहले होता था। जब सुदत्त के व्यापारी सड़क के रास्ते सामान लेकर ईरान तक जाते थे, तब वे वहां अपनी राष्ट्रीय पहचान समण बताते थे और वहां के लोगों को वमण बोलते थे।

अरबी में चार प्रकार के 'स' चलते हैं, से, सीन, शीन, सुआद जो बाद में वहां से यहां आ गये इसलिए समण का र्शमण / श्रमण सद्द हो गया।

तब देशी और विदेशी सद्द नही था। देस सद्द पालि में मिलता है, जिससे बहुत सारे सद्द बने हैं जैसे देसक (देसना करने वाला), देसना, देसन, देस, देसण, देसणा (दिखाना), उपदेस देना, जानकारी दिखाने वाला, Preacher, Teacher, गुरू आदि।

विदेसक, का अत्थ है विशेश/ विसेस रूप से दिखाने वाला। विदेसक से ही सद्द बने विदेस विदेसिक, विद्दसु। विद्दसु का अत्थ है विसेस रूप से देखा हुआ, यानि जिसने ज्यादा देखा है, इस लिये विद्दसु को बुद्धिमान बोला गया पाली भासा में

यही विद्देस, विदेस बाद में अपने नकारात्मक कार्यों के कारण विद्देस, विदेस से विद्वेष में बदल गया। जो विद्दसक बना, विध्वंसक-नुकसान करने वाला।

आज भी हम देशी और विदेशी बोलते हैं, जबकि पालि में समण और वमण है। वम्मण/वम्भन/वमण/वम्मण/बम्मण का अर्थ है जो घृणा युक्त, उल्टा है। विपरित है।

United Nations, संयुक्त राष्ट्र सद्द समरद्व असोक के संयुक्त राष्ट्र (महाभारत) से पहले पुरानी भाषा में कहीं नहीं मिलता। समरट्ट असोक महान राजा ने पहली बार रट्टों / राष्ट्रों को इकट्ठा किया था। संयुक्त रट्ट को बनाया था। संयुक्त रट्ट / राष्ट्र का नाम 16 महाजनपदों को मिलाकर, बुद्ध की आभा मे रत रहने के कारण महान आभा रत बुद्ध के नाम पर आभा रत पड़ा। जो बाद में आ खत्म होने के बाद भा रत, भारत और महाजनपदों के नाम से महा लेने के कारण, महा भा रत से महाभारत हुआ।

फिर ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश नेपक्कपाल, वर्मा, भूटान, तिब्बत, सीहल (श्रीलंका) आदि राज्यों के जाने से महाभारत से केवल भारत रह गया और महाभारत सद्द का अर्थ बदल कर प्रचारित किया गया।

समण संघ वही पुरातन समणों का संघ है। आज समणों को अपने बच्चों के सुखी जीवन के लिये फिर उसी संघ की याद आयी और वे अपनी पुरानी पहचान को यादकर घर वापिस आ गये, जो स्थायी पहचान है। मूल पहचान है बहुजनों की। जहां पहले ना जाति थी, ना धर्म था, ना कोई बाहरी भासा थी, ना कर्म काण्ड थे, ना आडम्बर थे, ना मंदिर-मस्जिद, गिरजाघर थे, ना वण्ण (रंग) भेद थे, ना चोरी थी, ना व्यभिचार था, ना हत्या थी, ना ही झूठ था, ना नशा-शराब थी, ना ही ब्याजखोरी थी, ना सामंतवाद था और ना ही कोई अत्याचार की घटना का जिक्र था।

अगर आप समण हैं, जन्म-जात समण। तब आप इसके आजीवन जन्म-जात सदस्य हैं। यह आपका जन्मजात अधिकार है।

यदि आपने समणों से बाहर शादी की है, मतलब वमणों से, तब आप समण संघ के सक्रिय सदस्य नहीं बन सकते हैं। आप साधारण सदस्य रह सकते हैं, यदि समण संघ सदन को कोई आपत्ति ना हो तब । बाबा साहब डॉ० अम्बेडकर ने Intercast (अन्तरजाति) शादी के लिये कहा था, लोगों ने Intervarn (अन्तरवर्ण) शादी आरम्भ कर दी। अन्तरवर्ण शादी जहर हैं और अन्तरजाति शादी अमृत हैं। वण्ण / वर्ण वाले लोगों में cast system नहीं होता है। मतलब यदि आप किसी वमण से पूछोगे कि आपकी cast / जाति क्या है? तब वह बोलेगा कि हमारे जातियां नहीं होती है। जाति जो बाद में अभ्यास में लायी गईं, उन्हीं जातियों के अन्दर शादी के लिये बाबा साहेब डॉ० अम्बेडकर ने कहा था।

यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि भारत में महिलाओं की जातियां नहीं होती हैं। महिला सभी समणी थीं। अब कुछ महिला बमणी बनने की जद्दोजहद में असफल हैं। पुरातन समय मे वमणी सद्द ही नहीं था, आज भी नहीं है।

संघ का पहला विनय संघ के आने वाले सभी विनय नियमों का मजबूत आधार है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि समण संघ में कभी भी वमणों की घुसपैठ नहीं होगी। यह हमेशा हमेशा के लिये अपने सुद्द / शुद्ध रूप में रहेगा। चिर काल तक।

आपने देखा होगा, यहूदी अपने संघ में यहूदी के अतिरिक्त किसी को शामिल नहीं करते हैं। ईसाई, मुस्लिम, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध भी अपने संघ मे किसी और को शामिल नहीं करते हैं। ये सभी बाद के संघ हैं, जो धार्मिक संघ कहलाते हैं।पर समण संघ धार्मिक संघ नही है, यह सामाजिक संघ है। समाज के हर समण का संघ । समणों को सुरक्षित रखने का संघ। देश प्रेमियों का संघ ।

बहुत से लोग जो पहले समण थे, पर वे अपने-अपने कारणों से वमणों की पहचान को अपना चुके हैं, वे समण संघ में दावा पेश करेंगे कि वे समण हैं, इसके लिये पुरानी भासा, किताब आदि का सबूत पेश करेंगे।

ऐसे लोग जो पहले ही समणघात कर चुके हैं, वे दोबारा भी समणघात ही करेंगे। ऐसे लोगो के लिये समण संघ में कोई स्थान नहीं है।

समण संघ केवल समणों के लिए है। वे समण जो ना झुके, ना टूटे, ना बदले, ना मैदान छोड़कर भागे, ना घबराए, ना कभी हार स्वीकार किए।

उन में से कुछ समण आज सुद्द समण से शुद्द समण, शुद्ध समण, शुद्र समण और शूद्र के नाम से जाने जाते हैं।


 

Adjective

संघ को कैसे पहचानें