Saman Sangh Slogan

जुड़ेंगे.... जीतेंगे | जिद्द.... जुङने की | जब जुड़ेंगे... तब जीतेंगे | जितना जुड़ेंगे..... उतना जीतेंगे | सौ साल बाद जुड़ेंगे तो... सौ साल बाद जीतेंगे | जुङो और जीतो | हमारा संघ....समण संघ | समणों की क्या पहचान...ऊंचा मत्था ऊंची शान

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We The People Saman Sangh-समण संघ

We The People – समण संघ👈

 


समणसंघ केवल अतीत की धरोहर नहीं है, बल्कि वह जीवित परंपरा है जिसने भारत के सामाजिक और बौद्धिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। यह कोई संस्था नहीं, बल्कि लोगों के बीच से उपजे विचार, समता की आकांक्षा और आत्मज्ञान की खोज का मार्ग है।

समता और मानवता की नींव

समता का दर्शन

समण परंपरा की जड़ें उस समय में हैं जब बौद्ध धर्म और श्रमण परंपरा भारत में सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन रही थीं। समण संघ उस विचार का प्रतीक है जहां जन्म से नहीं, कर्म से व्यक्ति की पहचान होती है।

यह विचार जाति, लिंग और वर्गभेद से परे एक समानता-आधारित जीवन दृष्टिकोण का निर्माण करता है।

"We the People" का अर्थ समणसंघ में

जन की चेतना

संविधान की प्रस्तावना में "We the People" का जो भाव है, वही भाव समणसंघ में प्राचीन काल से जीवित रहा है। यह वह समूह है जो राजसत्ता नहीं, धर्मसत्ता भी नहीं, बल्कि जनसत्ता और नैतिकता के सिद्धांत पर टिका है।

यह जनचेतना बुद्ध, महावीर, मक्खलि गोसाल जैसे विचारकों में प्रकट हुई, जिन्होंने सत्ता के केंद्रों को चुनौती दी और एक सम्यक जीवन का मार्ग दिखाया।

केवलअनुशासन नहीं, अनुबोध है👉 समणसंघ

आचार, विचार और करुणा

समण संघ में कोई कठोर अनुशासन नहीं बल्कि अनुबोध और करुणा की प्रेरणा है। इसका जीवनचक्र त्याग, संवाद और समाज के प्रति जागरूकता पर आधारित रहा है।

इस परंपरा में दीक्षा का अर्थ बुद्धत्व की दिशा में चलना है, न कि किसी संकीर्ण पहचान को धारण करना।

बौद्ध भिक्षु जीवन, ध्यान, और अहिंसा इस परंपरा की पहचान हैं।


आज के संदर्भ में समण संघ- आधुनिकता के साथ संवाद

समणसंघ आज भी केवल अतीत का अध्ययन नहीं है, बल्कि वह एक संवेदनशील सामाजिक उपस्थिति है। जब भी समाज में विभाजन, शोषण और असमानता बढ़ती है, समण संघ का विचार फिर से प्रकट होता है – लोगों की जुबान, कविता, आंदोलन और आत्मचिंतन के रूप में।

डॉ. आंबेडकर ने भी इस विचार परंपरा को अपनाया और उसे नया रूप दिया।


निष्कर्ष

समणसंघ कोई संस्था नहीं, यह "We The People" की एक आध्यात्मिक और नैतिक व्याख्या है। यह परंपरा बताती है कि समाज केवल शासन से नहीं चलता, वह समानता, स्वतंत्रता और बौद्धिक क्रांति से निर्मित होता है।

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