संघ लोगों का गण है, गण परिसद है। बिना बंधन के बंधे हुये समण
लोगों का प्राकृतिक बंधन है। प्राकृतिक, सामूहिक नियमों का, विनयों का बन्डल ही संघ है। संघ जो नियम बनाता है उन्हें संघ का आदेस, संघादिसेस कहते हैं।
साक्य संघ की बात है, संघ मे किसान सुद्दोदन के पुत्त सिद्दत्थ गोतम का संघ पवेस (प्रवेश) संखार (संस्कार) कायकम्य (कार्यक्रम) होना था। संघ बैठा। संघ सदन का सभापति चुना गया। संघ के सामने सिद्दत्थ ने तीन बार संघ में प्रवेश की अनुमति के लिये संघ से याचना की। संघ ने, संघ मे पवेस (प्रवेश) की शर्तें / विनय बताये। सिद्दत्थ गोतम ने उन संघ के विनयों पर तन, मन, धन से चलने का संघ को वचन दिया। सिद्दत्थ गोतम, समण साक्य संघ के सक्रिय सदस्य घोसित हुये।
एक घटना में पानी के ऊपर समण कोलियों से विवाद हुआ। आपस में युद्ध की स्थिति आ गई। समण साक्यों ने युद्ध की घोषणा के लिए सभा बुलाई। सिद्दत्थ गोतम ने समण साक्य संघ के आदेश के विपरित युद्ध करने से मना कर दिया। संघ का आदेश मानने से मना कर दिया। संघादिसेस से मना कर दिया। संघ ने, सिद्दत्थ गोतम के ऊपर संघघात की कार्यवाही की। कोर्ट मार्शल हुआ। संघ ने सिद्दत्थ गोतम को तीन सज़ा में से एक सजा चुनने को कहा। सिद्दत्थ गोतम ने सजा के रूप् में साक्य संघ से निकाला स्वीकार किया। सिद्दत्थ गोतम को घर बार जमीन, पत्नि, बच्चे को छोड़कर जाना पड़ा। राजा पसेनदि, किसान सुद्दोदन को भी संघ का आदेश मानना पड़ा।
आज भी पंचायतों में हुक्का पानी बंद, बिरादरी से बाहर किया जाताहै। सरकारी नियम भी है तड़ीपार का। सब वही संघ के विनय हैं जो आज भी अलग-अलग रूपों में भारत में चलते हैं।
गण परिसद, संघ तभी तक चलता है, जब तक उसके नियम /विनय / Rules कडाई से पालन किये जाये। जब नियमों मे कडाई की बजाय दिलाई आ जाती है तो संघ का, संविधान का बेड़ा गर्क हो जाता है।
सभी संघीयों को यदि अपने बच्चों का लाभ दिलवाना है। सभी बच्चों को सुरक्षित रखना है। सभी बच्चों को जिन्दा रखना है। अपना आस्तित्व कायम रखना है, तब संघ के आदेशों को सबसे पहले मानना ही होगा।
संघादिसेस, संघ का आदेश होता है। संघ का आदेश बनाने की प्रक्रिया के अर्न्तगत, सबसे पहले संघ के सामने संघ के कार्य को बढ़ाने हेतु किसी सुझाव का प्रस्ताव किसी भी समणसंघी द्वारा समण संघ सदन में रखा जाता है, उस पर चर्चा होती है, आवश्यक हो तो संशोधन होता है। प्रस्ताव पास होने के बाद वह पारित प्रस्ताव संघ का आदेश बन जाता है।
संघ का आदेस जो मानते हैं, वो हर मंजिल प्राप्त करते हैं। संघ के आदेस कठोर हो सकते है। इतने सालों बाद संघ पुनः बाहर आया है, तो थोड़ी परेशानी हो सकती है, पर कड़वी दवाई हो और फायदा करती हो तो तुरन्त पी जानी चाहिये। संघ ने पहले भी फायदा पहुंचाया है, दोबारा भी पहुंचायेगा।
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