पुराने समण संघ में एक भी उदाहरण कथा कहावत में नहीं मिलता कि जब समण लोग अपने संघ में कोई संगीति सम्मेलण, कारज, सभा, उस्सव करते हों और लोगों से धञ, धान्य, धान, धन, रजत चन्दे के रूप में वसूलते हों। चन्दा समणों की परम्परा, संखति नहीं है। समणों का मांगना, मांग कर खाना, याचना करना या याचक का किसी कथा, कहानी, कहावत में भी जिक्र नहीं है। हर कथा कहावत में जो मिलता है वह इस प्रकार है, "एक दलिद्द वमण / दलित वमण / दरिद्र वमण/ निर्धन वमण याचना करता है।" वमण बड़ा ही ईमानदार है, उसने हमेशा अपने आपको मांगकर खाने वाला, बड़े ही फख से बताया है। जब भी वमण ने याचना की है हमेशा समण के दरवाजे पर, समणों से की है। आप को ढूंढे से भी एक भी कथा या कहावत ऐसी नहीं मिलेगी, जिसमें समण याचक, भिखारी हो और वमण के दरवाजे पर खड़ा हो। क्योंकि उस समय बमणों के पास न दरवाजे थे, ना घर थे, न खेत, ना व्यापार। जो भी व्यक्ति बाहर से आता है वो शुरू में खाली हाथ ही आता है या हथियार के साथ आता है और मांगकर, याचना कर अपना पेट भरता है या लूटपाट करता है।
संघ अपनी गारव गाथा भूला, समणों ने वमणों की संखति अपनानी आरम्भ की। स्वाभिमान भूले। मांगकर खाना आदत में ले आयें। मांगकर खाना माननीय बना लिया। मांगकर खाने में शर्मिंदगी खत्म कर दी और समण संघ नीचे चला गया।
आज जब समण संघ अपनी बरसों पुरानी स्वाभिमानि गारव परम्परा को अपना रहा है, तब चन्दाजीवी संगठनों के कुछ लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि कैसे बिना चन्दे के समण संघ चलता है। यहां Zoom Meeting में रोजाना 8 बजे रात को कोई भी समण प्रश्न कर सकता है। पर अहम और वहम के मारे चन्दाजीवी प्रश्न नहीं पूछते हैं। और अपनी मनगढ़ंत कल्पनाओं के आधार पर ऐसा मान लेते हैं कि समण संघ किसी बाहरी मदद से चलता है। उन सभी को यह बताना जरूरी है कि समण संघ समण संघीयों के द्वारा ही चलता था, चलता है और चलता रहेगा।
पुराने समय में, संघ की संगीतियों में सभी अपने अपने साथ अपना खाना चादर (चीवर) अंगोछा के कोने में बांधकर, अपना पानी चमड़े की पानी को बोतल में, अपना ओढ़ना-बिछाना, अपनी दोतही चारतही (दूतई, चौतई) लेकर चलते थे। दो रोटी ज्यादा लेकर चलते थे। सब मिल बैठ कर खाते थे। कोई किसी से नही मांगता था
।वही परम्परा दोबारा जीवित हुई। समण संघ में आज जो यहां संगीतियां लगती हैं, वे नियम से बंधी हुई हैं।
1. संगीति के लिये निःशुल्क स्थान ढूंढ़ा जाता है। अम्बेडकर भवन, बुद्ध विहार, रविदास विहार, कबीर विहार, गाडगे विहार, घासीदास विहार, फुले / सावित्री विहार, कांशीराम विहार, दुर्बलनाथ भवन, गरीबदास भवन, रामदास भवन, वाल्मिकी भवन, गुरूचाँद ठाकुर भवन, हरिचॉद ठाकुर भवन, पेरियार भवन, बिरसा मुण्डा भवन, किसी भी समण महापुरिस का भवन, चौपाल, किसी का बड़ा घर, स्कूल, मैरिज होम, जो भी मिल जाये, समणों का।
2. सभी अपने साथ खाना लेकर आते हैं, अपने लिये और दो परांठे अपने किसी भाई के लिये।
3. सभी आपस मे मिल बैठ कर खाते हैं।
4. कुछ आवश्यक व्यवस्था यदि करनी पड़े तब वहां के जिम्मेदार समण संघी, जिनको महापुरिसों के वक्तव्य के वक्ता Spoke कहते हैं, वे अपने स्तर से उस व्यवस्था को करते हैं। अपने से भार उठाकर। किसी भी हालात में कोई भार पब्लिक पर नहीं डाला जाता है।
5. जिस संगीति मे फ्री की जगह उपलब्ध नहीं होती है व अपना खाना लाना भी सम्भव नहीं होता है, उन सभी संगीतियों में आने वाले भागीदार संघी अपना खुद का खर्चा, खुद पर, खुद ही खर्च करते हैं। इस व्यवस्था को संघ खुद संभालता है।
आने वाले सम्भावित खर्चे का हिसाब लगाकर व आने वाले भागीदारों की सम्भावित संख्या के आधार पर, एक संघी पर कितना खर्च आयेगा, यह तय करता है। House में यह Agenda लगता है, बहस होती है, एजेन्डा पास होने के बाद जो लोग / संघी संगीति में आते हैं, वो अपना खुद का खर्चा एडवांस देते हैं। इसके लिये अस्थायी व्यवस्था होती है, अस्थायी समीतियां बनती हैं, रोज-रोज रिर्पोटिंग होती है।
यदि पैसा, संगीति के उपरान्त कम पड़ता है। तब वह पैसा Spokes भरते हैं, यदि पैसा ज्यादा होता है, तब House में मामला रखा जाता है, फिर जो House तय करता है उस बचे पैसे का, वही किया जाता है।
खर्चे का सम्भावित हिसाब, वहीं संगीति के दौरान समाप्ति से पहले दे दिया जाता है। खर्चे की फाइल बन जाती है, जो भविष्य के लिए सुरक्षित रखी जाती है।
इस पूरे Process में, उस व्यक्ति से खुद का खर्चा नहीं लिया जाता जो आ नहीं रहा है। मतलब यदि आप समण संघ को पैसा देना चाहते हैं, पर आप आयेंगे नहीं, तब समण संघ आपका पैसा नहीं लेगा।
जैसे 12 फरवरी 2023 को दिल्ली में संगीति लगी। उसका खुद का खर्चा House ने 310रू. प्रति संघी, 155 रू. युवा संघी तथा 10 साल से छोटे संघी फ्री तय किया गया। ऐसे में यदि आप संघ को 315रू. या 350 रू. या 3000 रू. देना चाहते हैं तब भी संघ नही स्वीकारेगा। बस जितना तय हुआ है यानि 310रू. उतना ही लेगा। एक व्यक्ति से और उस व्यक्ति को संगीति में आना होगा।
इस प्रकार समण संघ उन व्यक्तियों से खर्चा नहीं लेता, जो आयेंगे नहीं। यानि चन्दा नहीं लेता है।
6. संघ की अन्य गतिविधियों को चलाने के लिये समण संघी खुद के खर्चे से आते-जाते हैं, रहने-खाने का खर्चा भी खुद ही उठाते हैं।
7. कुछ आवश्यक खर्चों के लिए समण संघ के अति सक्रिय सदस्य आपस में मिलकर बराबर बांटकर पूरा कर लेते हैं। पर किसी भी सूरत में पब्लिक, बाहर के व्यक्ति, या अन्य से कोई पैसा नहीं लिया जाता है। यह नियम पुरातन है, इसका पूरा पालन होता है।
8. प्रचार सामग्री जैसे बिल्ला, समण ग्रन्थ, कलेन्डर, स्टीकर, टी शर्ट टोपी, बैग, फोटो, हैण्डबिल, फ्लैक्स, एलईडी, कार्ड, बच्चों की नोटबुक, अखवार पत्रिका, डायरी, आदि लोग अपने पैसे से बनवाते हैं या सामूहिक रूप से पैसा आपस में इकट्ठा कर बनवा लेते हैं। इसमें हर संघी को उस प्रचार सामग्री की कीमत देनी होती है, जिसको वह इस्तेमाल करता है। समण संघ में कोई भी वस्तु ना फ्री में ली जाती है, ना ही फ्री में दी जाती है। सब संघी संघ को अपने खून-पसीने की कमाई से सींचते हैं।
9. समण संघ में बाहरी पैसा निषेध है।
10. संघ चन्दा इकट्ठा नहीं करता है। संघ संघीयों को इकट्ठा करता है।
संघ कुटुम्ब इकट्ठा करता है।
संघ जोड़ता है। जुड़ता है।।
11. समण संघ में फालतू खर्चे निषेध हैं। जैसे मंच, माला, दावत, फूल सजावट, फालतू बैनर, बस में ढोना, भण्डारा, Paid Press Conferences, दिखावा आदि ।
यहां Basic जरूरतों पर ही संघ चलता है। जिससे खर्चा नाम मात्र का होता है।
12. समण संघ जमीन जायदाद नहीं बनाता, ना ही Banke Balance बनाता है। यह निषेध है। पैसा, जमीन जायदाद से Movement टूट जाता है। विगत में सभी संगठनों, विहारों के टूटने का यही कारण है।
13. समण संघ की संगीतियां बढ़ती जा रही हैं और एक भी वाद विवाद पैसे को लेकर नहीं हुआ। क्योंकि संघ चन्दा लेता ही नहीं। संघ का कोई खाता / Account है ही नहीं।
14. समण संघ यह घोसणा करता है कि समण संघ कभी भी आम आदमी से चन्दा नहीं लेगा। ना ही लिया है। यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से चन्दे की बात भी करे, या चन्दा पर्ची पेश करें तो वह धोखेबाज है। उसकी तुरत FIR करवायी जाये और संघ को सूचित किया जाये।
15. जिन सगठनों को चन्दा लेने की आदत पड़ गई है वो समण संघ की आलोचना करने से पहले समण संघ में आकर इसका बिना चन्दे के काम करने का अवलोकन करें, बाद में आलोचना करें। बिना जाने समण संघ की बुराई न करें।
अधिकतर लोग चन्दे का धंधा करते हैं। चन्दे के पैसे से बड़ी गाड़ी, हवाई जहाज, महंगा होटल, शराब शबाव कवाब, देश-विदेश में मौज, महंगे महंगे होटलों में प्रेस कॉन्फ्रेन्स, दावत, महंगे महंगे मोबाइल, महंगे महंगे कपड़े, बड़े बड़े घर के शौक करते हैं, ये सब चन्दे के दम पर होता है क्योंकि किसी भी चन्दाखोर का चन्दे के अलावा और कोई धन्धा होता ही नहीं। सभी के संगठन प्राइवेट हैं, इसलिए कोई हिसाब भी नहीं देता है। चन्दे के कारण ही हमारे 29 लाख टुकडे हैं। बहुत सारे संगठन, समण संघ की पुरातन 'चन्दा कभी नहीं' की नीति से परेशान हैं। चन्दा समण समाज को जोड़ नहीं रहा है बल्कि तोड़ रहा है।
समझदार कार्यकर्ता को चन्दा लेना तुरंत बन्द देना चाहिये और समझदार समण/SC/ST/OBC को किसी को भी चन्दा नहीं देना चाहिये। चन्दा लेना व देना दोनों बीमारी हैं। जो परिवार समाज का चन्दा खाता है वह समाज की नजरों में इज्जत नहीं पाता है।
कोई आदमी चंदा इकट्ठा करें कि भूखे लोगों को भोजन करवायेगा और अपने नाम का बैनर लगाकर अपनी संस्था का बैनर लगाकर, लोगों को भिखारियों की तरह लाइन में खड़ा कर, उन लोगों को भिखारी होने का अहसास दिलाये, ये बहुत ही बड़ा पाप कम्म है। लोगों से पैसा इकट्ठा किया और लोगों को लाइन में लगा कर भिखारी की तरह खाना दिया और अपना नाम कर लिया। इससे चन्दा लेने वाला भी चन्दा मांगते समय भिखारी बनता है और भण्डारा करते समय सारे समाज को भिखारी बना देता है।
अगर दान ही करना है तो व्यक्ति को अपनी जेब से, अपनी संस्था के पदाधिकारियों की जेब से करना चाहिये। वरना नहीं। पर चंदाखोर ऐसा नहीं करते हैं। वे तो लोगों से चन्दा इकट्ठा करते हैं और खुद भी उसी में से खाते हैं। पैट्रोल भरवाते हैं, शराब पीते हैं।
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