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3.जाति का अभ्यास कभी नहीं।

 बुद्ध के ऐतिहासिक साहित्य में जाति, जात, वण्ण भेद (रंगभेद) का

जिक्र नहीं है। भारत में काल्पनिक साहित्य बनाने के बाद जाति के नाम इक्का दुक्का दिखाई देते हैं। पिछले 300-400 साल से ही जातियों के नाम दिखाई व सुनाई देते हैं। अगर आप ध्याान दोगे तो आज लोग अपने नाम के पीछे जो जातिसूचक सद्द लिखते हैं, वह जातिसूचक सद्द तीन पीढ़ी पहले दिखाई भी नहीं देंगे। आजकल के जातिसूचक सद्द इतिहास में ढूंढ़े से भी नहीं मिलते। जब समणों का संघ बिखरा तो जातियों में बदल गया। एक बात ध्यान देने की है कि समण लोगों का प्राचीनतम संघ बिखरा तो 6743 जातियों के नाम से जाना गया। वमणों में सिर्फ वण्ण / वर्ण हैं या वर्ग हैं। वर्गों मे जातियां नहीं हैं। पर वर्गों में भी भेद है। वहां जाति के गुण धर्म नहीं हैं क्योंकि वमणों में जाति नहीं होती। जो व्यक्ति जिस व्यवसाय को करता था, समण संघ टूटने के बाद, उस टूटन का नाम उसके व्यवसाय पर ही जाना गया, व्यवसाय, पैदावार, उत्पन्न करना (उत्पत्ति) को ही जात या जाति के नाम से ही पालि भासा में जाना जाता है। क्योंकि वमण कोई उत्पादन ही नहीं करता है इसलिए उसकी कोई जाति हो ही नहीं सकती है। इससे स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति की जाति है वो व्यक्ति मूलनिवासी समण है और पुरातन समय से कुछ न कुछ उत्पन्न कर रहा है।


भारत में जब सब समण थे, तब यहां न जातियां न वण्ण भेद (रंग भेद) था। कबीले थे, गाम थे, लोगों के नाम माता के नाम पर होते थे और सामाजिक पहचान कबीले के टोटम / कबीले की पहचान का चिन्ह, कबीले के गोत्त से होती थी। बड़ी पहचान महाजनपद के नाम से होती थी। सबसे बड़ी पहचान समण के नाम से होती थी।


तब न आजकल जैसी जाति थी न जाति का अभ्यास। वही पुराना नियम नं. 3 समण संघ में है।

दुनिया में कहीं जाति का अभ्यास नहीं है। भारत में भी जाति का अभ्यास नहीं था। पहली जाति कैसे बनी ? किसने बनायी? क्यों बनाई? कहाँ बनाई? कब बनाई? इसका जवाब देने वाले को समण संघ की तरफ से ईनाम ।


दुनिया की किसी किताब में नहीं है जाति कैसे बनी ? बनाने का तरीका क्या है? जाति बनाने का आदेश किसने दिया? कहां बैठक हुई? जाति बनाने के लिये कहां समिति बनी? कौन कौन पदाधिकारी रहे? समिति सभा का कौन अध्यक्ष रहा? देश के किस हिस्से में किस जाति का क्या मापदण्ड होगा? कौन सी जाति दूसरी जाति से कितनी बड़ी होगी? कितनी भारी? कितनी हल्की होगी? कौन सी जाति किस जाति से कितनी छोटी होगी? कितनी मोटी होगी? कुल कितनी जाति बनाई जायेंगी? अन्तिम जाति कौन सी होगी? सबसे छोटी जाति कौन सी है? सबसे बडी जाति कौन सी है? विदेशों में कौन सी जाति चलेगी? दो जाति के लोग जो शादी करेंगें, तब उनके बच्चे की कौन सी जाति होगी? जाति अगर अच्छी चीज है तो वमणों की जाति क्या है? अगर जाति खराब चीज है तब लोग इसका इस्तेमाल क्यों करते हैं? जाति के गुण धर्म की चर्चा किस वेद, किस पुराण, किस उपनिषद, किस महाकाव्य, किस महाभारत, किस गीता, किस आगम, किस त्रिपिटक, किस कुरान, किस गुरुग्रन्थ साहिब, किस बाईबल, किस टेस्टामेन्ट में हैं?


अगर आदमी पुरातन बुद्ध पद्धति से किसी और धर्म, मजहब, रिलीजन में जायेगा तो उसे कौन सी जाति दी जायेगी? कौन देगा? कैसे देगा?


जाति बनाने का सिद्धांत क्या है? जाति से क्या लाभ ? किसको लाभ? कितना लाभ? जाति से किसको हानि ? लाभ लेने वालों की जाति है या नहीं? बिना जाति का आदमी जाति का लाभ लेगा, ये किसने बनाया? किस सन में बनी जाति? किस साल, किस महीने में बनी जाति? सारी जातियां एक ही जगह, एक ही व्यक्ति, एक ही समय, एक कारण से बनीं? या लगातार बनाई गई? लिखित में क्यों नहीं है जाति बनाने की विधि? देवी-देवताओं की क्या जाति थी या है? देवता बिना जाति के थे क्या? मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म में जातियां किसने बनाई ? कब बनाई? और भी हजारों प्रश्न बनते हैं। banner


बाबा साहब डा० अम्बेडकर ने जाति पर अब तक की सबसे बड़ी खोज की है। इतनी मेहनत के बाद भी वे लगभग खाली हाथ ही रहे। बस इतना जान पाये कि जाति मन की ऊपज है। हवा में होती है जाति। जाति वास्तविकता नहीं है। जाति के लाभ-हानि होते हैं बस । जो जाति का अभ्यास करता है, उसकी जाति अजर अमर है और जो जाति का अभ्यास नहीं करते हैं, उनकी जाति तुरन्त खत्म हो जाती है। ये ठीक ऐसे है जैसे मानो तो देवता ना मानो तो पत्थर। जाति को मानोगे तो जाति है, नहीं मानोगे तो जाति नहीं है।


इसी सिद्धांत को लेकर, समण संघ में विनय नं0 3 पास हुआ कि "जाति का अभ्यास कभी नहीं"

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