समण संघ, समणों का संघ है। जैसा कि नाम के अर्थ से ही पता
चलता है। यह समण लोगों का संघ है। पुराने समय में केवल संघ ही होता था। सब लोग संग-संग संघ में रहते थे। संघ की विशेषताएँ हजार बार बताई जाती हैं। संघ जब बिखरा तब संघ के हजारों टुकड़े हुए। जिनका नाम जाति भेद, वर्ण भेद, रंग भेद, नस्ल भेद, भाषा भेद, संस्कृति भेद, आर्थिक भेद, कम्मभेद, व्यापार भेद, आदि आदि रहा है।
संघवाद बिखरा तो संगठनवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद, पूंजीवाद, धर्मवाद के चंगुल में फंस गया। लोगों ने 29 लाख संगठन बना दिये, 6743 जातियां और तीन वर्ण बना दिये। अलग भासा, अलग क्षेत्रों में लोग बंट गये। संघ क्या बिखरा लोगों ने हजारों प्रकार के धर्म बना दिये। हजारों सन्त आये इकट्ठा करने को, पर लोगों ने सन्तों के नाम पर ही लोग अलग-अलग सन्तो के मठों में बाँध दिये। लोगों ने अपने आपको रंग, पैसा, नस्ल,
भासा, काम, व्यापार, संस्कृति, धर्म के नाम पर एक दूसरे से तोड़ लिया। आज हर परिवार अलग थलग पड़ा है और चन्द लोग इनका फायदा उठा रहे हैं।
ध्यान से देखने पर ज्ञात होगा कि संगठन 29 लाख है। जो खुद 29 लाख टुकड़ों में टूटे पड़े हैं। वे समाज को कभी नहीं जोड़ सकते है। धर्म, मजहब, Religion हजारों प्रकार के हैं। जब ये खुद अलग-अलग हैं तो समाज को कभी नहीं जोड़ सकते हैं। 6743 जातियां हैं, जब ये जातियाँ ही एक दूसरे की दुश्मन हैं तब इनमें दोस्ती होने की सम्भावना दूर की बात है।
क्षेत्र एक दूसरे से नफरत करते हैं। भासा के नाम पर झगड़ा है। सभी संगठन इसका फायदा उठा कर चन्दा वसूलते हैं पर आपस में इकट्ठा नहीं होते हैं। फिर भी कुछ लोग कामयाब हैं दुनिया में, अगर उनकी कामयाबी का कारण खोजा जाये तो, संघवाद इसका कारण मिलता है। ये वे लोग है जिन्होंने पुरातन संघ, बुद्ध के भिक्खु संघ, बुद्ध के विनयपिटक से जानकारी ली फिर अपना संघ बनाया। उस पर अडिग रहे, उस पर चले और आज हर चीज के मालिक हैं। संघ में कमाल की शक्ति होती है इसीलिये बुद्ध ने कहा "संघे सत्ति युगे युगे" इसका अर्थ है योग योग करने से संघ में शक्ति आती है। योग का मतलब योज, जोड़ होता है। इसका सीधा सा अर्थ हुआ कि जुड़ने जोड़ने से संघ में शक्ति आती है।
समण संघ के लिये सेवा देने की एक शर्त है। शर्त बहुत साधारण है कि आप समण होने चाहिये, जन्म से, मूल जन्म से समण। जो लोग मूल जन्म से समण हैं वे इसके सदस्य अपने आप ही हैं।
यदि आप समण हैं और बाद में आपने किसी समण सन्त की विचारधारा में अपना नाम लिखवा लिया है। या अपना नाम किसी धर्म, मजहब, भासा, क्षेत्र में लिखवा लिया है, तब भी आप इस समण संघ के सदस्य रहेंगे।
आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, क्या भासा बोलते हैं, किस क्षेत्र में रहते हैं, किस धर्म का इस्तेमाल करते है, ये बाद की बात है। सर्व प्रथम आप जन्म से मूल समण होने चाहिये। इसीलिये समण संघ सबसे बड़ा घर है समणों का। जिसमें 29 लाख संगठन आ सकते हैं, 6743 जातियां आ सकती है, अलग-अलग मतों के समण आ सकते हैं। देश विदेश के समण आ सकते हैं।
संघवाद ने ही पहले हमारे बच्चों को बचाया था। संघवाद ही फिर बचायेगा। दुनिया ने संघवाद को अपनाया है।
भारत गणराज्य संघ। सोवियत संघ। संयुक्त राज्य संघ।
संघ सरणं गच्छामि बुद्ध का संघ, दुनिया का नियमबद्ध संघ।
संघवाद से बड़ा और सुरक्षित कोई भी तरीका आज के समय समणों के लिये नहीं है। हम सभी पुराने जन्म जात समण संघी हैं। हमारी पहचान एक समण संघी की रही है। दुनिया ने हमसे ही संघ के नियम सीखे हैं। समण संघ दुनिया का प्रथम नियमबद्ध संघ है। संघवाद, समण लोगों की मूल जन्मजात विचारधारा है। संगठनवाद विदेशी विचारधारा है। विदेशियो ने अपनी संगठनवाद की, नेतावाद की, प्रधानवाद की, हीरोवाद की विचारधारा हमें दे दी और हमारी संघ पर आधारित विचारधारा विदेशियों ने ले ली। आज के समय यूरोपियन यूनियन, संघ के नियमों पर आधारित है व कामयाब है। सोवियत संघ जब तक था, उसकी तूती बोलती थी। सोवियत संघ तोड़ा गया तो रूस में सकंट आ गया। भारत के अन्दर अल्पसंख्यक लोग संघ बना कर कामयाब हो गये और बहुसंख्यक लोग 29 लाख संगठन बना कर तबाह हो गये। भारत की राजनीतिक पार्टियां, जिन्होंने अलाइन्स किये, संघ बनाये, वे सत्ता तक पहुंची और जो पार्टियां अकेले रहीं, वे किनारे आ गईं।
दुनिया में जिन भी लोगों ने संघवाद का नियम अपनाया, उनके सभी दुख दर्द खत्म हो गये और जिन लोगों ने संगठनवाद, परिवारवाद, राजावाद अपनाया, उनके दुख बढ़ गये। संघवाद ही हमारे दुखों से मुक्ति का रास्ता है। इसके तीन उदाहरण देखिये। पहला, भारत की आजादी के लिए भारत में 'हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में हैं भाई भाई' का संघ बना और अंग्रेजों को भागना पड़ा। दूसरा, 2 अप्रैल 2018 को एससी/एसटी एक्ट को खत्म करने के विरोध में 4 घण्टे का अस्थाई संघ बना, लोग अपने अपने संगठन छोड़कर अस्थाई प्राकृतिक संघ में इक्टठा हुए और सरकार को अस्थाई संघ की बात माननी पड़ी। तीसरा, किसानों के विरूद्ध 3 कानून आये, किसानों के 32 संगठनों ने अलग अलग विरोध किया पर सरकार ने 32 अलग अलग संगठनों की बात नहीं मानी, पर जैसे ही 32 संगठनों ने किसानों का संघ बनाया, वैसे ही सरकार ने उनकी बात मान ली। इससे यह सिद्ध होता है कि संगठन सरकार से अपनी बात नहीं मनवा सकते और संघ की बात सरकार, संघ के घर जाकर मानती है।
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